कविता - 🌷 ' सपनों का जाल ' तारीख - शनिवार, १५ सप्टेंबर २०१९
कविता - 🌷 ' सपनों का जाल '
कवयित्री - तिलोत्तमा विजय लेले
तारीख - शनिवार, १५ सप्टेंबर २०१९
समय - दोपहर के ४ बजे
सोचने की बात ये है की,
ख्वाहिशें क्यूँ हैं रंग लाती ...
कुछ थोडी धुंधलीसी होती ...
कुछ होती आधी-अधुरीसी ...
तो कुछ कहीं सुनी-अनसुनी,
कुछ अध-खुले नैनों में बसी ...
कभी बरसती हैं आस्मानी ...
तो कभी बन कर दिवानी ...
कभी वें आंखोंसे बहे पानी ...
या कहीं यादों की निशानी ...
सपनों का एक माहोल होता,
जो सुंदर-मधुर-लुभावनासा ...
हर घडी-हर-लम्हा रंगीनसा ...
हसी-खुषी-मुस्कानों से भरा ...
मुठ्ठी में जक़ड कर रखी हैं ...
छबीयाॅं उन सुनहरे पलों की,
जाने कैसे जीए भी जिंदगी ...
सपनों के जाल में, यूँ फसी ...
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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