कविता - 🌷 " एहसास "... तारिख - शनिवार, ९ सप्टेंबर २०१७
कविता - 🌷 " एहसास "...
कवयित्री - तिलोत्तमा विजय लेले
तारिख - शनिवार, ९ सप्टेंबर २०१७
यूँ अपनीही धूनमें, सागर-किनारे टहलनेका मझा ही कुछ और है ...
समय कोईभी हो, चाहे दिन हो या रात हो चाहे सुबह हो या शाम हो ...
मौजोंका नजारा, तन-मनको एकदमसे तरो-ताजा करही देता है ...
नजर जहाँतक पहुँच पाये, दूर-दूर तक बस्स पानी ही पानी हो ...
कभी हलका हरा, कभी भुरा-साँवला हो कभी नीले आकाशकी तरह ...
आस्मान मानो पानीके साथ कुछ लुकाछुपी खेलता हुआ ...
समुंदर हमे सीखाता है जीने का एक अंदाज, नया-नयासा कुछ अलगसा ...
जब जैसा समय आये, जिंदगीका रुख बदलकर समयके अनुसार ढाँल देना ...
अगर जोरोंकी पवन बहती हो, मौजोंको उँचा, उपरतक उछाँल देना ...
मानो निले-निले अंबरको छूँ लेनेकी दिलकी, तमन्ना ही पूरी करनी हो ...
जब मंद-मंद गति से हवाएँ चलती हो, तो स्वयं शांतीदूत बनकर, पेश आना ...
चुपचाप से बहते रहना और अपनी ही " मौज " में बस्स, " मस्त " रहना ...!!!
जिंदगी भी कितनी हँसीन, दिलचस्प दिलरुबा जैसी है ...
उसकी मात्र आहट भी, होटोंपर पलभर में मुस्कान लाती है ...
तो दूसरेही पल आँखोंसे ओझल होकर, पागलसा बना देती है ...
सुनहली, रंगीन सुबह पाकर हँसीन ख्वाब बुननेमें मशगूल हो जाती है ...
तो पलही भरमें शामके नजारेका खामोश आलम देखकर ...
खुद देखते-देखते गायबसी हो जाती है ...
यूँही एक अनोखी, मीठीसी प्यास, मनमें जगाती हुई ...
एक अनकहा-अनसुना अधुरेपनका, एहसास दिलाती हुई ...
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
🙏🕉️🌅
Comments
Post a Comment