कविता -🌷 " संडे की-मिठास " तारिख - १९ डिसेंबर २०१६

कविता -🌷 " संडे की-मिठास "    तारिख - १९ डिसेंबर २०१६
कवयित्री - तिलोत्तमा विजय लेले

सुबह-सुबह ईमेल देखा आया, सिंगापूर, हाँगकाँग और पटाया ...
लकी-ड्रॉमें, मेरा नंबर लग गया-इस टूरका फ्री-टिकट मिल गया ...
आजकल नसीब कुछ जोरों में-ख़ुशीके मारे कुछ सूझ नहीं रहा ...
अब सामने खडी बडी समस्या-टूर का फ्री टिकट है दो जनोंका ...

अब सोचना पडेगा किसे ले जाऊं मेरे साथ-ये कैसी नौबत आयी ...
सोचमें पड गयी किसे ले जाऊं मेरे साथ, साथ चलनेको नहीं कोई ...
दो-टिकट लक्झरी-टूर की-बिल्कुल मुफ्त़-ऍडव्हान्स बुकिंग की हुई ...
अब जोरों-शोरों से तलाश करनी होगी जारी, मेरे टूर के साथी की ...
पिछले कुछ साल गुजर गये थे यूॅं-पता भी न चला, कैसें और क्यूँ 

प्रॉपर्टीके मसलोंमें यूं उलझी-जो अपना हैं, उसकी रक्षा  करनी जरुरी थी
ऐसे में, इतने व्यस्त जीवन में-किसी संगी-साथी के लिये जगह ही कहां थी?
दुनिया का उसूल है-अगर आप एक बिझी, तो समझो दुनिया दस-गुना बिझी 

अब जाके कुछ लग रहा है, कि सारें दोस्त-सहेेलियां ...
सब जन पिछे छुट गयें और समय यूँ बढता चला गया ...
आगे समस्या-तथा-समयका-घोडा, हमें पीछे खिंचता गया ...

अब सोंचूं, किसे साथ ले जाऊं-जो टूर में मेरा साथ अच्छेसे  निभाये ...
वैसे देखा जाय तो यह "झेन" टाईम है-अकेले हो, अकेले चलते जाओ ...
आगे हो, तो और आगे बढतें ही जाओ ...
दुनिया तो बस्स, बकरी की तरह है ...तुम्हारे पिछे-पिछे आ ही जायेगी ...

प्रश्न जरा नाज़ुक सा था-किसी एक को चुनना बडा मुष्कील काम था ...
दुसरों को जरूर बुरा लग सकता था ...आखीर में एक तरकीब सुझी 
फिर मैं मन-ही-मन में एकदम खिलसीं गयी ...

सारें कें सारें दोस्त-सहेेलियां, सारें सारें रिश्तेदार, पडोस-पडोसीयां ...
एक दिन सबको टूरवाली गुड-न्यूज देने, एक ही-जगह बुला लिया ...
हर एक उपस्थित के नामकी चिट्ठी बनाकर एक लकी-ड्रॉ निकाला ...
सबने खूब हंसीं-मजाकमें-खाते-पिते-गाते-पार्टी-जैसें आनंद लिया ...

एक छोटे बच्चेने, लकी-परछिंको निकाला, और बडे धडकते दिलसे
परछिंके ऊपर लिखा नाम, पढ लिया-जिस व्यक्तिका नाम ,लकी- ड्रॉसें
निकला, मैं तो बेहद खुश हो उठी ...झूमती मचलती हुई, नाचने भी लगी ...

आंखे खुली तो पता चला की "लेझी-संडे की" सुबह है, खुशी से ली अंगड़ाई
उस मीठे सपने में कुछ ऐसीं खो गयी- की संडे की-मिठास और भी बढ गयी !

🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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