कविता 🌷 ' सुदिन '

कविता - 🌷 ‘ सुदिन ‘
कवयित्री - तिलोत्तमा विजय लेले
तारीख - सोमवार, ९ सप्टेंबर २०१९
समय - १० बजकर ४२ मि.

एक था कल बिता, वह दिन
और एक है आज का सुदिन

सब कुछ था उलटा-पुलटा
मानो आस्मान ही था टूटा
चारों ओर अंधेरों का डेरा
ये कौनसे जनम का फेरा?

कल रवी का वार होते हुए भी
नाम मात्र का ही उजाला था
आंखों में आसुं तो छलक गये,
बस बारिश होने का इंतजार था

मन पानी-पानी सा हो गया था
मानो वक्त कुछ सीखा रहा था !
हर एक लम्हा अलग ही है होता,
बिता जो पल फिर लौट न आता !

आज का दिन बडा रंगीन सुनहरा 
हंसी-खुशीमें यूॅं बिता, पता न चला 
कब शुरू हुआ और कब का गुजरा,
बुरे कर्मों पर अच्छाई का था पहरा !

आज की तरह, यूॅं ही कटे जिंदगी
हॅंसते-गाते, कर लेनी है कुछ बंदगी
हर दिल में प्रेम की एक ज्योती जले
अंधेरों को मिटा के, रोशन कर डालें 

🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
🙏🕉️🔆










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