कविता -🌷 " अपेक्षाओं का दायरा ". तारिख - २१ नोव्हेंबर २०१६
कविता -🌷 " अपेक्षाओं का दायरा ".
कवयित्री - तिलोत्तमा विजय लेले
तारिख - २१ नोव्हेंबर २०१६
हम हरदम हर-एक से और हमेशा, हर चीज से खूब अपेक्षाएं हैं रखते ...
अपेक्षा रखना कोई बुरी बात तो नहीं, लेकिन सिर्फ एकतरफा सोचना, ...
अवास्तव अपेक्षाएं बोझ बनकर, रिश्तों मे दरार डालें, यह अच्छी बात नही
अपनी माँ सें सदा, "समझ" लेने की अपेक्षा
चाहे कुछ भी हो दायरा-ममता बरसाने की अपेक्षा ...
अपने जन्मदाता-पितासे, सदा सहारे की अपेक्षा ...
सहारा, चाहे हो शब्दों का सहारा, चाहे हो "अर्थ "का ...
या फ़िर उनकी प्रॉपर्टीज का ...
अपने बडे भाई से अपेक्षा, सदा प्यार और भाई-चारा ...
बचपन का याद रखना, हर छोटा-बडा वाकया,
हर-एक, प्यार-भरा लम्हा ...
अपने छोटे भाई से अपेक्षा, स्वयं का हरएक लब्ज, मान कर आज्ञा
पालन करना, बर्ताव को रखना सदा-प्यार- मुहब्बत-अदब से-आनंदभरा ...
अपनी बडी बहन से अपेक्षा ...माँ-जैसी उस की लगती मुरत
मन का लगाव भी हो माँ-जैसा ...गलतीको चुटकीमें माफ़ कर,
सदा अपनाए सहनशिलता ...
अपनी छोटी- बहन से अपेक्षा ...बच्ची-जैसा चाल-चलन,
मान-सम्मान करे बडोंका, जीत कर सब-जन का मन,
प्यार, जो छू लेता हो आस्मान ...
अपने बेटे से अपेक्षा ...चाहे जितना पढ-लिखकर,
सब से ऊंचा पद ग्रहण-कर, हो जाये सचमूच का बडा ...
कुछ भी हो जायें, किसी से भी पडे वास्ता ...
दुनिया में सब से बडा है, माँ-बेटे का नाता ...
अपनी बेटी से अपेक्षा ...माँ के आधी उमर की भी,
अगर होती है, उसकी बेटी ...ममता कम ना होने देंगी ,
माँ अपनी कभी भी ...
बेटी के लिये माँ सब-कुछ सदा है सहती, मान-सम्मान का भाव, कम न हो कभी
कभी भी शब्द, अपशब्द में ना बदलें ...कृतज्ञता की भावना मन से न निकले ...
क्यूँ की पूरे संसार में, अपने माँ-जैसी, और कोई भी नहीं होती महान-व्यक्ती !
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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