कविता - 🌷 ' जाल '

कविता -🌷 ‘जाल‘
कवयित्री - तिलोत्तमा विजय लेले
तारीख - शनिवार, १५ सप्टेंबर २०१९
समय - रात के ९ बजे 

सोचने की बात ये है की 
ख्वाहिशें क्यूँ हैं रंग लाती

कुछ धुंधली सी होती
कुछ आधी अधुरी सी
तो कहीं सुनी-अनसुनी
अधखुली नैनों में बसी

कभी बरसती आस्मानी
तो कभी बनकर दिवानी
कभी आंखोंसे बहे पानी
कहीं यादोंकी मीठी निशानी

मुठ्ठी में जकड कर रखी
छबीयाॅं सुनहरे पलों की 
जाने कैसे जीए जिंदगी
सपनों के जाल में यूँ फंसी

🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
🙏🕉️🔆

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